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भारत की विदेश नीति पर निबंध | Essay on Foreign Policy Of India in Hindi

आज का निबंध  भारत की विदेश नीति पर निबंध Essay on Foreign Policy Of India in Hindi पर दिया गया हैं. भारत की विदेश नीति क्या है.

इसके आधार स्तम्भ उद्देश्य निर्धारक तत्व विशेषताएं मूल्यांकन के बिन्दुओ पर दिया गया हैं. उम्मीद करते है सरल भाषा में दिया गया इंडियन फोरेन पालिसी का यह निबंध आपको पसंद आएगा.

भारत विदेश नीति पर निबंध Essay on Foreign Policy Of India in Hindi

भारत की वर्तमान विदेश नीति निबंध 300 शब्द.

भारत का हाल ही के वर्षों में दूसरे देशों के साथ संबंध का अध्ययन करें तब हमें एक नए भारत की नईं विदेश नीति नजर आती है। भारत अभी भी विश्व शांति का प्रबल समर्थक देश है।

भारत आज विश्व के बाकी देशों के साथ आगे बढ़ने और अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखते हुए अपनी सामरिक स्वायत्तता को बनाएं हुए है। भारत विश्व के सभी देशों के साथ संवाद को बनाए रखने के प्रयास में है और सभी देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रही है। 

वर्तमान में भारत अपने सामरिक हितों की पूर्ति के लिए अमेरिका और रूस दोनो को संतुलित रुप से साथ लेकर आगे बढ़ रहा है। भारत की वर्तमान  विदेश नीति India First पर आधारित है।

भारत रूस यूक्रेन युद्ध में अपनी तटस्था रखकर इसका परिचय दे चुका है। अमरीका के दबाव बनाने के बावजूद भारत अपने पक्ष पर कायम है। भारत रूस से तेल भी आयत कर रहा है।

इस पर कई देशों ने भारत पर दबाव बनाकर तेल आयात नहीं करने को कहा। जब एक एक विदेशी पत्रकार ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से रूस से तेल खरीदने पर प्रश्र किया तो एस जयशंकर ने भारत का पक्ष बेबाकी से रखते हुए कहा कि भारत से कई गुना ज्यादा तेल यूरोपीय देश रूस से खरीद रहे है, और भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा।

भारत विश्व की ⅕ आबादी वाला देश है, जिसे बिना किसी भय के अपने राष्ट्रीय हित के फैंसले लेना का पूरा अधिकार है। जिस प्रकार विकसित देश अपने राष्ट्रीय हित को सर्वोपरी रखते हुए विदेश संबंधी फैसले लेती है, वही कार्य भारत भी कर रहा है। 

भारत ने आज तक कभी भी किसी पर पहले युद्ध शुरू नही करने की नीति पर कायम है। भारत अपनी सैन्य ताकत को भी लगातार बढ़ा रहा है।

Long Essay on Foreign Policy Of India in Hindi

विश्व संबंधो के मामले में भारत की एक सुदीर्घ परम्परा रही है. प्राचीन भारतीय वांग्मय में भारतीय समाज ने सम्पूर्ण मानवता के समग्र विकास व हितों की रक्षा व प्रकृति प्रदत भेदों को नकारते हुए विश्व परिवार की अवधारणा को इस प्रकार स्वीकार किया है.

“अंय निज परोवेति गणना लघुचेतसाम उदातचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्”

इसके पीछे भारतीय विदेश नीति का यह मन्तव्य रहा है कि हितों की टकराहट का रास्ता छोड़ सबके कल्याण व सबके सुख का मार्ग अपनाएँ-

“सर्वें भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत.”

कालान्तर में इन्ही श्रेष्ट जीवन मूल्यों के मार्ग पर चलकर भगवान् बुद्ध, महावीर स्वामी, सम्राट अशोक, विवेकानंद आदि ने मानवता का प्रचार किया.

अपनी स्वतंत्रता से लेकर आज तक भारत ने सदैव अन्य देशों के साथ मित्रता के सेतु बाधने का प्रयास किया है, भारत की विदेश नीति के इन्ही तत्वों के फलस्वरूप जिसे विश्व में आज बड़ा समर्थन हासिल है.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी विभिन्न मंचो से भारत ने अपनी प्राथमिकताओं एवं आदर्शों को दोहराया है. अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर भारत ने प्रारम्भ से ही अपने स्पष्ट विचार रखे है.

भारत ने सदैव उन राष्ट्रों की स्वतंत्रता की अवधारणा तथा आत्म निर्णय के अधिकार का समर्थन किया है. साथ ही सहस्तित्व व सबके हित के लिए बने अंतर्राष्ट्रीय संगठनो को भी भारत ने समर्थन प्रदान किया है.

भारत ने साम्राज्यवाद के विरुद्ध अपने रुख को स्पष्ट किया है. इस प्रकार एक राष्ट्र के रूप में स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ही भारत की विदेश निति तथा इनके उद्देश्य बेहद स्पष्ट थे. एक नजर भारत की विदेश नीति के तत्व, सिद्धांत, लक्ष्य एवं विशेषताएं पर.

भारत की विदेश नीति के उद्देश्य (indian foreign policy objectives and principles In Hindi)

भारत की विदेश नीति में मैत्री, शांति एवं समानता के सिद्धांतों को सर्वाधिक महत्व दिया गया है. भारत ने सभी के साथ सहयोग एवं सद्भाव रखते हुए सुद्रढ़ एवं सुस्पष्ट नीति का निरूपण किया है. भारत की विदेश नीति के तीन आधार स्तम्भ है- शान्ति, मित्रता और समानता.

विदेश नीति के उद्देश्यों में राष्ट्रीय हितों की पूर्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व होता है. भारत सदैव से ही अपने राष्ट्रीय हितों के साथ समायोजित करता रहा है.

हमारे मानवतावादी श्रेष्ट आदर्श एवंम श्रेष्ट जीवन मूल्य विदेश नीति के दीर्घकालीन आधार बने है. इसी सुसंस्कृत विचार ने भारत की विदेश नीति को हर काल में निरन्तरता दी है.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत भारतीय विदेश नीति के मूल तत्वों का समावेश किया गया है. भारत की विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्न है.-

  • अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा व शांति के लिए प्रयत्न करना.
  • अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थ द्वारा सुलझाना.
  • सभी राज्यों में परस्पर सम्मानपूर्ण सम्बन्ध बनाना.
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून में आस्था.
  • सैनिक समझौतों व गुटबंदियों से अलग रहना.
  • उपनिवेशवाद व सम्राज्यवाद का विरोध.
  • रंगभेद का विरोध करना तथा अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत राष्ट्रों की सहायता करना.
  • सभी देशों के साथ व्यापार, उद्योग, निवेश, प्रोद्योगिकी अंतरण को सक्रिय व सहज बनाना.
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष आने वाली चुनौतियों के समाधान खोजने में सहयोग करना.
  • दक्षिण एशिया में मैत्री और सहयोग के आधार पर अपनी स्थति मजबूत करना.

भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व (Determining elements of Indian foreign policy In Hindi)

सनः 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष कुछ विशेष परिस्थतियाँ व चुनौतियाँ थी. अतः तात्कालिक विदेश नीति के निर्धारण में इन तत्वों का महत्वपूर्ण स्थान रहा.

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय समूचा विश्व दो विरोधी गुटों में विभाजित था. अतः भारत ने अपने आप को गुटों की राजनीती से अलग बनाए रखने का निश्चय किया. अपना आर्थिक व सर्वागीण विकास करना भारत की पहली प्राथमिकता थी.

इसके लिए उसे विश्व के सभी देशों के सहयोग की आवश्यकता थी. इसी परिद्रश्य ने गुट निरपेक्ष आंदोलन को नयी अवधारणा की भूमिका तैयार की थी.

अपनी प्रतिरक्षा व्यवस्था को सुद्रढ़ कर देश की एकता व अखंडता को बनाए रखना भी अत्यंत महत्वपूर्ण था.

भारत की विदेश नीति के निर्धारण में भौगोलिक तत्वों का अपना महत्व है. प्रादेशिक सुरक्षा किसी भी राष्ट्र का परम लक्ष्य होता है. एक ओर भारत पूर्व सोवियत संघ तथा साम्यवादी चीन जैसी ताकतों के समीप था.

दूसरी ओर उसका दक्षिणी पूर्वी तथा दक्षिणी पश्चिमी हिस्सा समुद्र से घीरा है. अपनी सुरक्षा शांति व मैत्री में ही भारत का हित निहित है.

भारत की विदेश नीति के निर्धारक में प्राचीन संस्कृति का प्रभाव रहा है. विश्व बन्धुत्व विश्व शांति व मानवतावाद अतीतकाल से हमारे प्रेरक मूल्य रहे है.

स्वतंत्रता संग्राम के तत्कालिक नेतृत्वकर्ताओं के विचार ने भी हमारी विदेश नीति को प्रभावित किया है.

भारत की विदेश नीति की मुख्य विशेषताएं (features of indian foreign policy in Hindi)

गुट निरपेक्षता (concept of non alignment movement).

परिस्थतिवश भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के समय समूचा विश्व दो गुटों में विभाजित था. एक का नेतृत्व पूंजीवादी अमेरिका कर रहा था तथा दूसरे का साम्यवादी सोवियत संघ रूस.

भारत ने अपने वैचारिक अधिष्ठान व हित के कारण दोनों गुटों के परस्पर संघर्ष से दूर रहने का निर्णय किया. गुटों की राजनीति से अलग रहकर अपने विकास पर ध्यान केन्द्रित करता रहा, जो आगे जाकर गुटनिरपेक्षता की नीति कहलाई.

यह नीति विश्व की विभिन्न समस्याओं पर स्वतंत्र व न्यायपूर्ण विचार प्रकट करती है. इस दर्ष्टि से यह एक सकारात्मक व रचनात्मक नीति है.

गुटनिरपेक्षता के अंतर्गत कोई भी राष्ट्र दोनों विचारों से राष्ट्रहित में मैत्रीपूर्ण व संतुलित सम्बन्ध रखकर अपने आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है. गुट निरपेक्षता किसी भी सैनिक गुट से सैनिक संधियों से असहमति रखती है.

दासता से मुक्त हुए भारत सहित सभी नव स्वतंत्र राष्ट्रों के लिए इस आंदोलन ने एक नवीन मार्ग प्रशस्त किया. इस नीति का अवलम्बन करके नव स्वतंत्र राष्ट्र अपने विकास के नये आयाम खोल पाए.

साथ ही अंतर्राष्ट्रीय विवादों में सही गलत के आधार पर निर्णय के लिए एक तीसरे मंच का आविर्भाव हुआ.

गुट निरपेक्षता को एक आंदोलन का रूप देने में प्रधानमंत्री पंडित नेहरु, युगोस्लाविया के मार्शल टीटो, मिस्र के राष्ट्रपति नासिर तथा इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्ण की व्यापक भूमिका रही. पांचवें एवं छठे दशक में इस आंदोलन ने एक व्यवस्थित रूप प्राप्त कर लिया.

सन 1961 में आयोजित बेलग्रेड शिखर सम्मेलन में शान्ति एवं निशस्त्रीकरण पर बल दिया गया. इसका सोहलवा शिखर सम्मेलन 2 अगस्त 2012 में ईरान की राजधानी तेहरान में सम्पन्न हुआ.

इसमे 120 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, इसमे परमाणु निशस्त्रीकरण, मानवाधिकार व मानवीय मुद्दों पर व्यापक चर्चा हुई.

शीत युद्ध की समाप्ति तथा सोवियत संघ के विघटन के बाद गुट निरपेक्ष आंदोलन की उपयोगिता व प्रासंगिकता पर सवाल उठते रहे,

परन्तु यह कहा जा सकता है कि नवीन चुनौतियों व समस्याओं के समाधान के प्रयासों ने सन्गठन की प्रासंगिकता को बनाए रखा है.

इस आंदोलन ने नव उपनिवेशवाद, मानव अधिकार, पर्यावरण, आर्थिक व क्षेत्रीय सामाजिक जटिलताओं जैसे नवीन क्षेत्रों में अपना विस्तार करके अपनी महत्ता को सिद्ध कर दिया है.

भारत की विदेश नीति पंचशील सिद्धांत (India’s Foreign Policy Panchsheel Principle)

पंचशील गौतम बुद्ध द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धर्म के पांच व्रतों का परिभाषिक शब्द है. पंचशील का अर्थ है आचरण के पांच सिद्धांत.

पंचशील को भारत की विदेश नीति के सन्दर्भ में सर्वप्रथम 29 अप्रैल 1954 को तिब्बत के सम्बन्ध में भारत और चीन के बिच हुए एक समझौते में प्रतिपादित किया एशिया के प्राय सभी देशों ने पंचशील के सिद्धांतो को अपनाया.

कालांतर में इस सिद्धांत को विश्व स्तरीय पहचान पत्र हुई, पंचशील के पांच सिद्धांत ये है.

  • अनाक्रमण की नीति
  • एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और सर्वोच्च सता के प्रति सम्मान
  • समानता और परस्पर लाभ
  • एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना.
  • शांतिपूर्ण सहस्तित्व

पंचशील के सिद्धांत नैतिक शक्ति के प्रतीक है. पंडित नेहरु ने एक बार कहा था यदि इन सिद्धांतो को सभी देश मान्यता दे दे तो आधुनिक अनेक समस्याओं का समाधान मिल जाएगा.

प्रारम्भ में पंचशील को विश्व में भारत की विदेश नीति की महान उपलब्धी माना जाता था परन्तु 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर यह सिद्ध कर दिया कि पंचशील एक भ्रान्ति है.

इस आक्रमण से भारत की विदेश नीति व वैश्विक प्रतिष्ठा को भारी अघात लगा. आलोचकों ने इसे भारत की कुटनीतिक पराजय माना.

पंचशील के सिद्धांतों में भारत का आज भी विश्वास है, लेकिन वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय वातावरण में वैचारिक व नैतिक प्रतिबद्धता के अभाव के चलते इसकी व्यापक सफलता के सिमित अवसर प्रतीत होते है.

शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (peaceful coexistence meaning in hindi)

भारतीय दर्शन में सदैव वसुधैव कुटुम्बकम् का समर्थन किया है. इसका तात्पर्य विभिन्न धर्मों तथा सामाजिक व्यवस्थाओं वाले देशों के साथ शान्तिपूर्वक सह-अस्तित्व में बने रहना है.

शान्ति पूर्ण सह-अस्तित्व पंचशील सिद्धांतो का ही विस्तार है. भारत की विदेश नीति के माध्यम से परस्पर विरोधी विचारधाराओं वाले राष्ट्रों को मैत्रीपूर्वक रहने का संदेश दिया है.

भारत ने स्वयं भी अधिकाधिक मैत्री सन्धियाँ व व्यापारिक समझौते किये है. यह नीति रचनात्मक विकास की आधारशिला है. भारत प्रारम्भ से ही युद्ध का विरोधी एवंम शांति व उसके लिए आवश्यक निशस्त्रीकरण का समर्थक रहा है.

युद्ध की संभावनाएं बनने पर भारत ने अनेक बार मध्यस्थ की भूमिका निभाई है. वर्तमान में विश्व में कई देशों के पास आणविक शक्ति है.

अर्द्ध विकसित व पिछड़े राष्ट्रों के विकास हेतु शान्ति का वातावरण अनिवार्य है. वास्तव में शांतिपूर्ण सहास्तित्व अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को दृढ तथा कुशल व्यावहारिक आधार प्रदान कर सकता है.

साम्राज्यवाद तथा रंगभेद का विरोध (Protest against imperialism and apartheid)

भारत स्वयं साम्राज्यवाद का शिकार रहा है. इसके दुष्परिणामों को अनुभव कर चूका है. इसलिए सम्पूर्ण दुनियाँ में साम्राज्यवाद के किसी भी रूप का वह प्रबल विरोध करता है.

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत ने एशिया तथा अफ्रीका के उन सभी राष्ट्रों का समर्थन किया, जो अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे.

भारत सभी लोगों के लिए आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करता है. तथा साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद को शोषण का साधन माना है. साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का विरोध भारत की विदेश नीति के प्रारम्भिक आदर्शों में है.

जिसके माध्यम से प्रारम्भ से लेकर अब तक भारत ने शोषण के खिलाफ संघर्षशील राष्ट्रों का मनोबल बढ़ाने का कार्य किया है.

इसी प्रकार नस्लीय भेदभाव व रंगभेद का विरोध भारत की विदेश नीति की विशेषता रही है. भारत विश्व की सभी मानव नस्लों व प्रजातियों की समानता का पक्षधर है तथा नस्ल व रंग के आधार पर किये जाने वाले भेदभाव का प्रबल विरोध करता है.

प्रजातीय विभेद समानता की अवधारणा के प्रतिकूल है तथा अंतर्राष्ट्रीय वातावरण को दूषित करता है. नस्ल भेद के विरोध के स्वरूप ही भारत ने भूतकाल में दक्षिण अफ्रीका के साथ अपने कुटनीतिक सम्बन्ध विच्छेद कर लिया.

अमेरिका में नीग्रो और रोडेशिया के अफ़्रीकी लोगों का भी भारत ने खुलकर समर्थन किया. इस नस्लवाद व रंगभेद की नीति पर चलने वाले विभिन्न देशों के विरुद्ध कई प्रकार के प्रतिबंध लगाने में सहयोग किया. भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से भी अपनी मुखर नीति को मुखर स्वर प्रदान किया.

संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन (india’s contribution to united nations)

भारत संयुक्त राष्ट्र संघ प्रारम्भिक सदस्य रहा है. तब से लेकर आज तक इस अंतर्राष्ट्रीय संस्था की नीति व कार्यों का समर्थन करता आ रहा है.

संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व शान्ति हेतु स्थापित अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत है भारत ने हमेशा ही इसके आदेशों व अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की अनुपालना की है.

भारत पाक विवाद पर भी भारत ने तत्काल ही संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयों की पालना की है. इससे भारत की इस संगठन के प्रति निष्ठा व प्रतिबद्धता सिद्ध हो जाती है. अनेक भारतीयों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में उच्च पदों को सुशोभित कर अपने देश का गौरव बढ़ाया है.

आवश्यकता पड़ने पर भारत ने इसे अपनी शान्ति सेना भी प्रदान की है. वर्तमान में सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए प्रयत्नशील है.

भारत की विदेश नीति का मूल्यांकन | Evaluation Of indian Foreign Policy In Hindi

भारतीय विदेश नीति प्राय अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करने में समर्थ रही है. यह हमारी विदेश नीति की मुख्य विशेषता है. साथ ही इसने उच्च मानवीय मूल्यों पर आधारित होने के कारण इसे गौरवशाली भी माना जाता है.

हालांकि यदा कदा अपने सैनिक एवं आर्थिक हितों को लेकर भारतीय विदेश नीति आलोचना का शिकार रही है. कुछ विषयों को छोड़कर कहा जा सकता है.

कि विश्व के बदलते हुए परिद्रश्य व समय की मांग के अनुसार इसने अपने आप को परिवर्तित किया है. यही कारण है, कि इसमे निरन्तरता व गत्यात्मकता देखी जा सकती है.

भारत ने अपने आर्थिक पहलू को महत्व देना आरम्भ कर दिया है. व्यापार एवं वाणिज्य पर अपनी विदेश नीति को लेकर भारत गंभीर है.

भारत अमेरिका संबंधो में व्यापक सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है. 2010 तथा पुनः 2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा से दोनों देशों के बिच बदलाव के संकेत दिखाई दिए है. वर्तमान में डोनाल्ड ट्रम्प एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी अच्छा तालमेल है.

दक्षिण एशिया तथा विकासशील देशों के नेतृत्व की भूमिका भी भारत की विदेश नीति में आए सकारात्मक बदलाव की तरफ ईशारा करती है. भारत के परमाणु परिक्षण ने अणुशक्ति पर पश्चिम देशों व चीन के एकाधिकार को तोड़ दिया है.

यह सिद्ध करता है कि एक तरफ भारत की विदेश नीति शांति और सद्भाव के प्रति वचनबद्ध है, तो दूसरी तरफ अपने हितों की पूर्ति करने में समर्थ एवं सक्षम है.

भारत की विदेश नीति ने उसकी सांस्कृतिक पहचान को भी विस्तार दिया है. भारतीय कला, भोजन, वेशभूषा, संस्कृति आदि को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है.

वस्तुतः विगत दो दशकों में भारत ने आर्थिक एवंम तकनिकी प्रगति की है. अपनी गत्यात्मक विदेश नीति के कारण ही आज भारत को नई वैश्विक भूमिका प्राप्त हुई है.

भारत की विदेश नीति अतीत से लेकर वर्तमान तक गौरवशाली परम्पराओं को अभिव्यक्त करती है. विश्व शांति, मैत्री, विश्व बन्धुत्व एवं सहयोग जैसे श्रेष्ट आदर्श इसके प्रमुख स्तम्भ आधार रहे है.

हमारी विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य अपने राष्ट्रीय हितों के साथ अंतर्राष्ट्रीय हितों का समायोजन करना है. भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्वों में तत्कालीन, भौगोलिक तत्व व विचारधारा का प्रभाव उल्लेखनीय है.

गुट निरपेक्षता भारत की विदेश नीति की एक प्रमुख विशेषता है. इसका तात्पर्य है कि तत्कालीन गुटों की राजनीती से आप को अलग रख कर अपने देश के विकास पर ध्यान देना.

भारत ने पंचशील के सिद्धांतो का प्रतिपादन किया जिसके अंतर्गत अनाक्रमण की नीति अपनाना, एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता का सम्मान, समानता, अहस्तक्षेप की नीति तथा शांतिपूर्ण सह अस्तित्व सम्मिलित है.

भारत रंग अथवा जाति प्रजाति के आधार पर भेदभाव करना समानता के अधिकार के प्रतिकूल मानता है. अतः भारत नस्लवाद व रंग भेद का विरोध करता है. ये indian foreign policy के मुख्य objectives & principles रहे है.

अंतर्राष्ट्रीय शांति व बन्धुत्व को बनाए रखने के लिए भारत अंतर्राष्ट्रीय संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन करता है. विश्व के बदलते हुए परिद्रश्य एवं परमाणु निशस्त्रीकरण पर परमाणु संपन्न राष्ट्रों की भेदभावपूर्ण नीति से क्षुब्ध होकर भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम को नया रूप प्रदान किया है.

किसी भी देश की विदेश नीति तैयार करने वाले निर्माताओं का दूरदर्शी होना निहायत जरुरी हैं. देश के विदेश विभाग में एक नियोजन मंत्रालय होना चाहिए.

जो भविष्य की संभावनाओं के बारे में सटीक अनुमान और आंकलन करके देश की फोरेन पालिसी को उस दिशा की और ले जाने के लिए सुझाव दे सके. आने वाले समय का सही सही पूर्वानुमान लगा लेना ही एक सफल विदेश नीति का अहम लक्ष्य होता हैं.

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Essay on the Foreign Policy of India | Hindi | Policies | Economics

foreign policy of india essay in hindi

Here is an essay on the foreign policy of India. Also learn about India’s relationship with its neighboring countries.

विदेश नीति वैदेशिक संबंधों का सारभूत तत्व है । आज विश्व के सभी राष्ट्र एक दूसरे से भौगोलिक दूरी पर स्थित होते हुए भी संचार के आधुनिक साधनों से निकट आ गए हैं । विश्व के किसी भी भाग में घटने वाली घटना दूसरे राष्ट्रों पर आवश्यक रूप से प्रभाव डालती है ।

विश्व के सभी राष्ट्र एक-दूसरे पर आश्रित हैं । यही कारण है कि वर्तमान में विश्व राजनीति में अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के विकास तथा निर्माण को महत्व दिया गया है । अपने विदेश संबंधों को अपनी इच्छानुसार संचालित करने के लिए एक श्रेष्ठ विदेश नीति की आवश्यकता होती है ।

ADVERTISEMENTS:

विदेश नीति उन सिद्धांतों का समूह है जो एक राष्ट्र, दूसरे राष्ट्र के साथ अपने संबंधों के अन्तर्गत अपने राष्ट्रीय हितों को प्राप्त करने के लिए अपनाता है । दूसरे राज्यों से अपने संबंधों के स्वरूप स्थिर करने के निर्णयों का क्रियान्वयन ही विदेश नीति है । इसी प्रकार विदेश नीति एक स्थायी नीति होती है जो राष्ट्रीय जीवन मूल्यों से निर्मित होती है ।

भारत की विदेश नीति:

भारत की विदेश नीति का विश्व पर गहरा प्रभाव पड़ा है । भारत का सांस्कृतिक अतीत अत्यन्त गौरवपूर्ण रहा है । न केवल पड़ोसी देशों के साथ अपितु दूर-दूर स्थित देशों के साथ भी भारत मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए प्रयत्नशील रहा है ।

भारत की विदेश नीति की जडें विगत कई शताब्दियों में विकसित सभ्यताओं के मूल में छिपी हुई हैं और इसमें प्राचीन तथा मध्ययुगीन चिन्तन शैलियों ब्रिटिश नीतियों की विरासत स्वाधीनता आंदोलन तथा वैदेशिक मामलों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहुंच गाँधीवादी दर्शन के प्रभाव आदि का प्रभावशाली योग रहा है ।

भारत की विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्य:

i. भारत को विश्व की प्रभावशाली शक्ति बनाना ।

ii. भारत के औद्योगिक विकास के लिए दूसरे देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त करना ।

iii. उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद का विरोध करना ।

iv. एशिया और अफ्रीका के देशों के स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करना ।

v. राष्ट्रमंडल के देशों से घनिष्ठ संबंध बनाए रखना ।

vi. राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करना ।

vii. वैदेशिक व्यापार के विकास हेतु आवश्यक दशाओं का निर्माण करना ।

viii. प्रवासी भारतीयों के हितों की रक्षा करना ।

ix. पारस्परिक आर्थिक तथा जनहित के रक्षार्थ एशियाई अफ्रीकी देशों को संगठित करना ।

x. संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन तथा सहयोग करना ।

भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व:

1. भौगोलिक तत्व:

भारत की विदेश नीति के निर्धारण में भारत के आकार, एशिया में अपनी विशेष स्थिति तथा दूर-दूर तक फैली सामुद्रिक और पर्वतीय सीमाओं का विशेष स्थान है । भारतीय व्यापार तथा सुरक्षा इन्हीं पर निर्भर

2. गुटनिरपेक्षता:

विश्व दो गुट पूंजीवाद और साम्यवाद में बँटा हुआ था । दोनों में मनमुटाव के कारण शीत युद्ध चल रहा था । भारत ने इन दोनों गुटों से अलग रहकर अपने आपको गुटनिरपेक्ष देश रखा जो दोनों गुटों के मध्य मध्यस्थ का कार्य कर अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को कम करने में सहायता करता है ।

3. ऐतिहासिक परम्पराएं:

भारत की विदेश नीति सदैव शांतिप्रिय रही है । भारत की अपनी प्राचीन संस्कृति और इतिहास है । आज तक भारत ने किसी दूसरे देश पर प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयत्न नहीं किया । यही परंपरा वर्तमान विदेश नीति में देखी जा सकती है ।

4. राष्ट्रीय हित:

पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में कहा था कि किसी भी देश की विदेश नीति की आधारशिला उसके राष्ट्रीय हित की सुरक्षा होती है और भारत की विदेश नीति का ध्येय यही है ।

भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत:

1. गुट निरपेक्षता:

विश्व में शांति व सुरक्षा बनाए रखने के लिए भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति अपनाई जिसका अर्थ है शक्तिशाली गुटों से दूर रहना । गुट निरपेक्षता की नीति न तो पलायनवादी है और न अलगाववादी बल्कि मैत्रीपूर्ण सहयोग को संभव बनाने की है ।

2. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध:

ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अधीन भारत दासता के दुष्परिणाम से परिचित रहा । अत: उसके लिए साम्राज्यवाद का विरोध करना स्वाभाविक था । भारत संयुक्त राष्ट्र संघ में उपनिवेशवाद के विरुद्ध भी आवाज उठाता रहा है । आज भी भारत नव-उपनिवेशवाद के विरुद्ध आवाज उठा रहा है । इण्डोनेशिया, लीबिया, नामीबिया आदि साम्राज्यवाद से त्रस्त देश हैं ।

3. नस्लवादी भेदभाव का विरोध:

भारत सभी नस्लों की समानता में विश्वास रखता है । अपनी स्वतंत्रता के पहले भारत दक्षिण अफ्रीका की प्रजाति पार्थक्य नीति के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ में बराबर प्रश्न उठाता रहा है । भारत ने जर्मनी की नाजीवादी नीति का भी विरोध किया । इस प्रकार अन्तरर्राष्ट्रीय समुदाय में नस्लवाद की पूर्ण समाप्ति भारतीय विदेश नीति का प्रमुख सिद्धांत है ।

पंचशील पहली बार तिब्बत के मुद्दे पर 29 मई 1954 को भारत और चीन के बीच हुई संघि में साकार हुआ । पंचशील संस्कृत के दो शब्द पंच और शील से बना है ।

पंच का अर्थ है पाँच और शील का अर्थ है आचरण के नियम अर्थात् आचरण के पाँच नियम जो निम्न हैं:

i. एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और संप्रभुता का आदर ।

ii. अनाक्रमण ।

iii. एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप ।

iv. समानता और पारस्परिक लाभ ।

v. शांतिपूर्ण सहअस्तित्व ।

5. विश्व शांति के लिए समर्थन:

भारत संयुक्त राष्ट्रसंघ के मूल सदस्यों में से है । वह विश्व शांति के लिए कार्य करता है । आई॰एल॰ओ॰, यूनीसेफ, एफ॰ए॰ओ॰, यूनेस्को (ILO, UNICEF, FAO, UNESCO) आदि से वह सक्रिय रूप से जुड़ा है । भारत सदैव लोगों के सामाजिक और आर्थिक कल्याण के लिए संयुक्त राष्ट्र के निर्देशों का पालन करता रहा है ।

6. निःशस्त्रीकरण का समर्थन:

भारत आज भी शस्त्रों की होड़ रोकने का समर्थक है । इसके लिए आवश्यक है कि जो शस्त्र बनाए जा रहे हैं उन्हें न बनाया जाए और जो बने हैं उन्हें नष्ट कर दिया जाए । केवल नि शस्त्रीकरण ही अंतर्राष्ट्रीय शांति को सुदृढ़ बना सकता है । नि:शस्त्रीकरण से बचाए धन और साधनों के उपयोग से सभी राष्ट्रों का विकास हो सकता है ।

7. परमाणु नीति:

भारत परमाणु नीति का युद्ध के लिए प्रयोग करने के विरुद्ध है । भारत अन्तरिक्ष के परमाणुकरण का समर्थन नहीं करता । तथापि वह परमाणु अप्रसार संधि का विरोधी है क्योंकि वह पक्षपात पर आधारित है ।

6. सार्क से सहयोग:

दक्षिण एशियाई राज्यों के साथ भाईचारे के संबंधों का विकास करने के लिए भारत ने सार्क की स्थापना में सहयोग दिया है । सार्क में भारत, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, भूटान और मालदीव आदि राज्य सम्मिलित हैं । इस प्रकार उक्त सिद्धांतों ने भारत को उसके उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता भी की है तथा भारतीय विदेश नीति को गति भी प्रदान की है ।

पड़ोसी देशों से भारत के संबंध:

भारत एक विशाल देश है, जिसकी सीमाएं चीन, नेपाल, भूटान, बर्मा (म्यांमार), श्रीलंका और पाकिस्तान से मिलती है । भारत के संबंध अपने पड़ोसी देशों के साथ हमेशा एक से नहीं रहे हैं । यदा कदा समस्याएं भी आती रही हैं ।

भारत ने इन समस्याओं को सदैव शांतिपूर्ण ढंग से परस्पर वार्ता से सुलझाने का प्रयास किया है इन्हें सुलझाने में वह किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं चाहता है । देश के आर्थिक विकास और शांति तथा स्थिरता के लिए पड़ोसी देशों के साथ मित्रता और सहयोग आवश्यक है ।

भारत और चीन:

भारत और चीन की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से है । दोनों देशों के सम्बन्ध हजारों वर्षों पुराने हैं । ईसा से पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक के समय से चीन में बौद्ध धर्म का विकास

हुआ । अशोक काल के बाद भारत के अनेक विद्वान चीन गए ।

चीनी यात्री भी भारत आते रहे जिनमें फाह्यान और ह्वेनसाँग प्रमुख थे । चीनी विद्यार्थी नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने आया करते थे । वर्तमान काल में 1949 में चीन में साम्यवादी क्रांति के परिणामस्वरूप साम्यवादी सरकार स्थापित हुई । भारत ने चीन में साम्यवादी क्रांति का स्वागत किया और चीन की नई सरकार से अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने की पहल की जो काफी कुछ सफल भी हुई ।

साम्यवादी चीन को सबसे पहले मान्यता देने वालों में भारत प्रमुख था भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन को सदस्य बनाने में काफी महत्वपूर्ण पहल की । भारत और चीन ने 1954 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जो पंचशील समझौते के नाम से पूरे संसार में जाना जाता है ।

पारस्परिक सम्बन्धों को निर्धारित करने वाले इन पाँच सिद्धांतों को दोनों देशों ने स्वीकार किया तथा माना गया कि विश्व के अन्य देशों में भी पारस्परिक संबंधों में इनका पालन करना चाहिए । पर कुछ समय बाद चीन ने भारत-चीन सीमा के बहुत बडे भाग पर अपना दावा प्रस्तुत किया तथा 1962 में भारत पर चीन ने आक्रमण किया । भारत ने चीन के इस आक्रमण का विरोध किया और अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए युद्ध किया । युद्ध के बाद भारत-चीन संबंध तनावपूर्ण हो गए और बहुत समय तक सामान्य नहीं रहे ।

युद्ध के लगभग दो दशकों बाद भारत-चीन संबंधों में सुधार के प्रयत्न दोनों ओर से किए गए । दोनों देशों के बीच जो राजनयिक सम्बन्ध टूट गए थे 1976 में उन्हें पुन: स्थापित किया गया । दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए वार्ताएं प्रारंभ की गईं । वर्तमान में दोनों देशों के बीच अनेक आर्थिक व्यापारिक और राजनीतिक समझौते हुए हैं पर सीमा विवाद अभी भी भारत-चीन संबंधों में अनसुलझा है, उसे सुलझाने के शांतिपूर्ण प्रयत्न किए जा रहे हैं ।

भारत और नेपाल:

नेपाल, भारत के उत्तर में स्थित है । अभी तक यह एकमात्र हिन्दू राष्ट्र था पर अक्टूबर 2006 में नेपाल में राजा के विरोध में हुए सत्ता संघर्ष के बाद यह हिन्दू राष्ट्र नहीं रहा । भारत और नेपाल की सीमाएं उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड तथा हिमालय के दक्षिणी ढाल पर मिलती हैं ।

नेपाल के साथ भारत के संबंध परम्परागत हैं । यह प्रसिद्ध है कि नेपाल माता सीता तथा गौतमबुद्ध की जन्मस्थली है । पशुपतिनाथ का शिव मंदिर नेपाल में स्थित है, जो भारतीयों का प्रमुख धार्मिक स्थल है । भारत और नेपाल के राजनीतिक और आर्थिक संबंध भी मजबूत हैं ।

भारत ने विकास योजनाओं के लिए नेपाल को 8 करोड़ का अनुदान दिया । नेपाल के बीच 1974 में औद्योगिक व तकनीकी सहयोग बनाने के लिए समझौता किया इस प्रकार भारत ने नेपाल के सामाजिक और आर्थिक विकास में काफी सहयोग दिया है ।

भारत ने नेपाल में 204 किलोमीटर लम्बे पूर्व-पश्चिम राजमार्ग, जो महेन्द्र मार्ग कहलाता है के निर्माण में 50 करोड़ रुपया नेपाल को दिया । वीर अस्पताल का बाह्य रोगी विभाग भी भारत के सहयोग से बना । 1950 में भारत ने नेपाल के साथ व्यापारिक सन्धि की है । भारत ने नेपाल को समुद्र मार्ग की सुविधा दी है ।

भारतीय सुरक्षा की दृष्टि से नेपाल की विशेष स्थिति है । नेपाल, चीन और भारत के बीच स्थित है । 1950 में भारत-नेपाल के बीच हुई संधि के अनुसार भारत नेपाल को अपनी सुरक्षा के लिए शस्त्र आयातित करने की सुविधा देगा । दोनों देशों के नागरिक स्वतंत्र रूप से एक-दूसरे के देश में आ जा सकते हैं । नेपाल में सामन्तशाही व्यवस्था समाप्त करने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका थी ।

नेपाल से बहुत से विद्यार्थी भारत में अध्ययन करने के लिए आते रहे हैं । नेपाल में अक्टूबर 2006 में सत्ता परिवर्तन हुआ । इस सत्ता परिवर्तन के परिणामस्वरूप राजा का पद समाप्त कर दिया गया और वहाँ पूर्ण प्रजातांत्रिक सरकार स्थापित हुई । वर्तमान में नेपाल में नए संविधान निर्माण की प्रक्रिया चालू है । सत्ता परिवर्तन के बाद भी भारत-नेपाल संबंधों में कोई बदलाव नहीं आया है ।

भारत और भूटान:

भूटान भारत के उत्तर पूर्व में स्थित छोटा-सा देश है । भूटान के उत्तर में तिब्बत पश्चिम पूर्व में तथा दक्षिण में भारत है । इस देश का क्षेत्रफल लगभग 53 हजार वर्ग किलोमीटर है । यहाँ की आबादी अधिकांशत: बौद्ध धर्म का पालन करने वाली है ।

भारत, भूटान के संबंध वैसे ही परम्परागत हैं, जैसे कि भारत-नेपाल के हैं । पहले भूटान का एक बड़ा भाग भारत की सीमाओं में ही था और सातवीं शताब्दी तक भारतीय शासक उस क्षेत्र में शासनाध्यक्ष थे । भूटान की धार्मिक पृष्ठभूमि में बौद्ध भिक्षु पद्मसम्भव का विशेष स्थान है ।

पद्मसम्भव ने ही भूटान की जनता को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया । भूटान के लोग इन्हें आज भी अपना गुरु मानते हैं । भारत-भूटान व्यापारिक और आर्थिक संबंध काफी पुराने हैं । भूटान से रेशमी कपड़ा और सुपारी खरीदी जाती थी । 1910 में ‘सिनचुला संधि’ हुई इसी संधि के आधार पर भारत-भूटान बने ।

1949 में ‘भारत-भूटान संधि’ पुन: हुई जिसमें यह स्वीकार किया गया कि भूटान की प्रतिरक्षा का दायित्व भारत का है । भूटान के आर्थिक विकास में भारत पूरी तरह सहयोग कर रहा है । सितम्बर 1961 में जल टंका नदी के संबंध में भारत- भूटान समझौता हुआ ।

आज इस नदी पर विद्युत उत्पादन हो रहा है । भूटान की राजधानी थिम्पू भारत के सहयोग से आधुनिक नगर बनी । भारत ने वहाँ की सड़कों का आधुनिकीकरण किया । भूटान में भारत ने पेनडेना सीमेंट संयंत्र के लिए 13 करोड़ की आर्थिक सहायता दी ।

भारत और पाकिस्तान:

पाकिस्तान का निर्माण भारत विभाजन के परिणामस्वरूप 14-15 अगस्त 1947 की रात्रि में हुआ । दोनों देश ऐतिहासिक भौगोलिक सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से सभी बातों में समान हैं परन्तु विभाजन के परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच प्रारंभिक समय में तो सम्पत्ति, सीमा, नदी जल वितरण आदि समस्याओं को लेकर विवाद चलते रहे किन्तु शीघ्र ही दोनों देशों के बीच राजनीतिक विवाद प्रारंभ हो गए ।

कश्मीर को लेकर दोनों देशों के मध्य विवाद पाकिस्तान की स्थापना के कुछ ही दिनों के बाद प्रारंभ हो गया । इस विवाद के चलते पाकिस्तान ने चार बार भारत पर सैनिक आक्रमण भी किया । पहली बार अक्टूबर 1947 में सीमावर्ती कबाइलियों को भड़काकर तथा उन्हें सैनिक सहायता उपलब्ध कराकर कश्मीर पर आक्रमण करवाया ।

दूसरी बार सितम्बर 1965 में कश्मीर पर पाकिस्तान ने व्यापक आक्रमण किया । तीसरी बार 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय में कश्मीर पर आक्रमण किया । चौथी बार 1999 में पुन: पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया जो ‘कारगिल युद्ध’ के नाम से मशहूर है ।

चारों आक्रमणों का उद्देश्य सैन्य शक्ति द्वारा कश्मीर पर अपना अधिकार स्थापित करना था पर चारों बार भारतीय सेना ने पाकिस्तान द्वारा किए गए आक्रमणों को असफल कर दिया । पाकिस्तान के प्रति भारत की नीति प्रारंभ से ही शांतिपूर्ण वार्ताओं और समझौतों द्वारा पारस्परिक समस्याओं के सुलझाने की रही है । इस दृष्टि से भारत ने राजनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के क्षेत्रों का विस्तार करके कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं ।

दोनों देशों ने समझौतों द्वारा इस दिशा में पहल भी की है । सांस्कृतिक शिष्टमण्डलों का आदान-प्रदान, खेल-कूद के क्षेत्र में दोनों देशों में प्रतियोगिताओं का आयोजन और दोनों देशों के पत्रकारों और लेखकों का एक-दूसरे के देश में आना-जाना प्रारंभ हुआ है । दोनों देशों की जनता एक ही रही है । अनेक परिवार दोनों देशों में बसे हैं ।

विवाह संबंध भी दोनों देशों में है जनता के स्तर पर आवागमन की दृष्टि से दोनों देशों ने समझौते किए हैं तथा कई सड़क और रेल यातायात जो वर्षों से बंद पडे थे अब खोल दिए गए हैं । दोनों देशों में आर्थिक और व्यापारिक समझौते भी हुए हैं । दोनों देश सार्क और साफा के सदस्य हैं ।

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते दोस्ती और तनाव के रहे हैं । पाकिस्तान के कई कार्यों को भारत पसन्द नहीं करता । पाकिस्तान आतंकवादियों को प्रशिक्षण, सहायता और शस्त्र उपलब्ध कराता रहा है । भारत के कई आतंकवादी पाकिस्तान में शरण लिए हुए हैं, जिनकी सूची भी भारत ने पाकिस्तान को उपलब्ध कराई है; तथापि पाकिस्तान इन्हें भारत को सौंप नहीं रहा है ।

पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर सदैव भारत की आलोचना करता रहा है तथा कश्मीर का मुद्दा उठाता रहा है । भारत भी पाकिस्तान के द्वारा इन प्रयत्नों का विरोध करता रहा है । दोनों देश आणविक शक्ति हैं । दोनों देशों का सम्मिलित रूप से विश्व शांति के लिए कार्य करना आवश्यक है । भारत ने इस दिशा में पहल की है ।

भारत और बांग्लादेश:

1947 के भारत विभाजन के परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान के रूप में (बांग्लादेश) पाकिस्तान का भाग था । शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश के लोगों ने पूर्वी पाकिस्तान की मुक्ति के लिए आन्दोलन किया और अन्तत: 1971 में इस आन्दोलन को सफलता मिली और स्वतंत्र बांग्लादेश अस्तित्व में आया ।

भारत ने बांग्लादेश की स्थापना में ऐतिहासिक सहयोग दिया । भारत बांग्लादेश को मान्यता देने वाला पहला देश था । बांग्लादेश की स्थापना के बाद भारत ने बांग्लादेश को आर्थिक संकट भुखमरी बेरोजगारी आदि से निपटने के लिए पूरी सहायता दी ।

जनवरी 1972 में भारत ने 25 करोड़ के खाद्यान्न तथा अन्य वस्तुएं और 50 लाख पौण्ड की विदेशी मुद्रा ऋण के रूप में प्रदान की । मार्च 1972 में दोनों देशों के बीच 25 वर्षीय मैत्री संधि हुई जो ऐतिहासिक थी । दोनों देशों के बीच व्यापारिक आर्थिक समझौते भी हुए तथा संयुक्त नदी आयोग स्थापित किया गया ।

भारत बांग्लादेश के बीच कुछ मुद्दों पर मतभेद भी हैं । फरक्का बांध समस्या उनमें से एक है । इसके अलावा घुसपैठियों की समस्या भी प्रमुख है । घुसपैठ के कारण भारत के सम्मुख सुरक्षा की समस्या उत्पन्न हो गई है । चकमा आदिवासियों तथा दोनों देशों की सीमा पर कांटेदार बागड़ लगाने के मामले में भी मतभेद हैं । नया मुद्दा बांग्लादेश से भारत में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देना भी है । भारत-बांग्लादेश से अच्छे संबंध बनाने के लिए सदैव तत्पर रहा है ।

भारत और श्रीलंका:

भारत के दक्षिण में चारों ओर समुद्र से घिरा श्रीलंका भारत का महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है । भारत से श्रीलंका के धनिष्ठ संबंधों का इतिहास बहुत पुराना है । भगवान राम और उनके बाद सम्राट अशोक के काल में भारत-श्रीलंका संबंध प्राचीन इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ी है । अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका की यात्रा की थी तभी से श्रीलंका प्रमुख बौद्ध धर्मावलंबी देश है ।

श्रीलंका भी भारत के समान विदेशी साम्राज्यवादियों का शिकार बना था । यहाँ पुर्तगाली डच और बाद में ब्रिटिश शासन रहा । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद फरवरी 1948 को यह स्वतंत्र राज्य बना । भारत ने श्रीलंका की स्वतंत्रता, प्रभुता और प्रादेशिक अखण्डता का सम्मान करने की घोषणा की ।

स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी श्रीलंका ने त्रिंकोमाली का नौ सैनिक अड्डा तथा कटुनायके का हवाई अड्डा ब्रिटेन के नियंत्रण में रहने दिया । बहुत से भारतीय नागरिक विशेषत: तमिलनाडु के लोग श्रीलंका जाकर बस गए हैं तथा वहाँ चाय और रबड़ के बागानों में कार्य करते हैं ।

श्रीलंका के साथ भारत के अच्छे व्यापारिक संबंध हैं । राजनीति के क्षेत्र में भी भारत- श्रीलंका के साथ पारस्परिक सहयोग और सहायता की नीति का अनुसरण करता रहा है । यद्यपि भारत-श्रीलंका संबंध घनिष्ठ और सुदृढ़ हैं, तथापि दोनों देशों के बीच कुछ समस्याएं भी हैं ।

दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित करने वाली सबसे बड़ी समस्या है श्रीलंका में बसे भारतीय मूल के रहने वालों की । ये भारतीय मूल के निवासी ब्रिटिश शासन काल से ही रबर और चाय बागानों में काम करने के लिए श्रीलंका जाते रहे हैं और वहाँ बसते रहे हैं ।

प्रारंभिक काल में तो कोई समस्या नहीं थी पर श्रीलंका के स्वाधीन होने के बाद श्रीलंका नागरिकता नियम 1948 तथा श्रीलंका संसदीय नियम 1949 के द्वारा अधिकांशत: प्रवासी भारतवंशियों को नागरिकता और मताधिकार से वंचित कर दिया गया ।

हाल के कुछ वर्षों में श्रीलंका में उत्पन्न जातीय संघर्ष भारत के लिए चिन्ता का कारण बन गया है । श्रीलंका में बसे तमिल अल्पसंख्यक समुदाय है । अधिकांश तमिल श्रीलंका के उत्तर में जाफना जिले में रहते हैं । श्रीलंका में तमिल लोगों का बहुत बड़ा वर्ग पृथक तमिल राज्य की माँग करता रहा है । यही तमिल समस्या है । तमिल समस्या के कारण भारत और श्रीलंका में तनाव की स्थिति बनी है ।

समस्या को सुलझाने के लिए भारत ने कई प्रकार से सहायता की है । जुलाई 1987 में दोनों देशों के बीच हुए समझौते के अन्तर्गत भारत ने श्रीलंका को आंतरिक जातीय समस्या को सुलझाने के लिए ‘भारतीय शांति सेना’ भेजकर सहायता दी थी ।

भारत और म्यांमार (बर्मा):

म्यांमार (बर्मा) भारत की पूर्वी सीमा पर स्थित पड़ोसी देश है । भारत के म्यांमार से परम्परागत मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं । दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने के लिए समझौते किए गए हैं । दोनों देशों के बीच तस्करी की समस्या अवश्य है । अवैध रूप से सीमाओं को पार करने की घटनाएं होती रही हैं ।

1987 में जब भारत के प्रधानमंत्री म्यांमार गए थे उस समय भारत और म्यांमार के बीच नशीले पदार्थों की तस्करी तथा अवैध कार्यों को नियंत्रित करने में एक-दूसरे के साथ पूर्ण सहयोग करने का संकल्प किया था । वर्तमान में भारत म्यांमार संबंध सामान्यत: मैत्रीपूर्ण हैं ।

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